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मसान के फूल

  मसान के फूल डॉ. इन्दु गुप्ता   सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा तथा संगीत , नृत्य व नाट्य की विभिन्न शैलियों में कला अनुभव व वैभव से सुसमृद्ध... सुसम्पन्न संगीत-साधकों तथा कला-मनीषियों और प्रचुर रोशनी से जगमगाते हॉल में मंच उद्घोषक की आवाज़ लगातार गूंज रही थी। ' मानसी सुखदा ' को हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान हेतु सर्वोच्च सम्मान के लिए मंच पर पधारने का ससम्मान आग्रह किया जा रहा था। राष्ट्रपति महोदय से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में सर्वोच्च सम्मान प्राप्त करने का दर्प मानसी के मुखमण्डल पर दिप-दिप दैदीप्यमान हो रहा था। हरी नारंगी कांचीवरम , घुटनों तक लम्बी चोटी पर सजा बेला का गजरा , अवसर मुताबिक सुरूचिपूर्ण सुन्दर हल्के आभूषण। साड़ी संभालती मानसी सुखदा मां और गुरूमां कृष्णप्रिया देवी और नारंगी कुर्ते तथा नीली डेनिम में बैठे श्रीहास के बगल से उठकर स्टेज की तरफ बढ़ चली थी। सुखदा की आंखें झर-झर बरस रही थीं। अड़तीस बरस पहले भी उसकी आंखें इसी तरह बरसी थीं , उस नर्सिंग होम में जहां सुखदा ने मानसी को जन्म दिया था। अश्रु-वर्षा इसलिए नहीं कि प्रसव बहुत कठिनाई से ह...

जिंदगी की तलाश में तृतीयलिंगीय समाज

जिंदगी की तलाश में तृतीयलिंगीय समाज प्रतिभा आज भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में लगातार तरक्की कर रहा है। कहने को तो भारत विश्वगुरू बन गया है और कहने के लिए ही भारत सबका साथ ,  सबका विकास की भावना के साथ आगे बढ़ रहा है लेकिन सिर्फ कागजों पर और कहने के लिए। कहने को तो तमाम रूढ़िवादी और दकियानूसी सोचों की इस समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए लेकिन आज भी भारत दकियानूसी सोच और भेदभाव के मामले में कहीं आगे है। भेदभाव कई रूपों में है। कहीं जाति के आधार पर ,  कहीं रंग के आधार पर ,  कहीं भाषा ,  क्षेत्र और लिंग आदि के आधार पर। इन सब भेदभावों में जो सबसे ज्यादा होता है वो लिंग के आधार पर होता है। चाहे वो फिर महिला हो या फिर तृतीयलिंगीय समाज। चूंकि इस आलेख का विषय तृतीयलिंगीय समाज है तो हम आगे इसी पर बात करेंगे।   तृतीयलिंगीय समाज का जिक्र तमाम पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। चाहे वो महाभारत में अर्जुन का बृहन्नला बनना हो या फिर कैलाश पर रहकर शिव की आराधना करता किन्नर समाज हो या फिर रामायण में राम के वन आगमन के बाद से राम का किन्नर समाज के साथ संवाद हो। किन्नर समाज की जड़ें...